Thursday, October 5, 2017

100 rupay ka Dard


Chapter 1
अगस्त 25 , 2017 : जब मैं अपने नये घर में शिफ्ट हुई तो मेरे हिसाब से मेरी ज़िन्दगी सुकून से भरी थी. काम में प्रमोशन, हफ्ते में तीन दिन काम, बाकी दिन आराम। पहली रात,अतीव थकावट के बाद मैं बिस्तर पर पड़ी सोचने लगी कि कल बाकी सामान खाली करना है और तब घर बिलकुल सेट हो जायगा। सेट अच्छा लगता है मुझे। हर चीज़ अपनी जगह हो,हर चीज़ साफ़ सुथरी हो,हर चीज़ काम करती हो. ये हो तो कोई तकलीफ नहीं है मुझे। मेरी ज़रूरतें बेहद कम हैं. मेरे पास सामान कम है; कम मगर अच्छी चीज़ों की आदत है मुझे. तो आप समझ ही सकते होंगे की मेरी मानसिक स्थिति कितनी सुकून से भरी थी. बाहर बारिश हो रही थी,मैंने बालकनी का दरवाज़ा खोल दिया। यही सब सोचते सोचते थोड़ी सी नींद लग गयी. मुझे क्या पता था की मेरी ज़िन्दगी का सुकून बस उस दरवाज़े से यूं ही निकल जायेगा। करीब एक घंटे बाद मेरी नींद खुल गयी. एक अजीब सी आवाज़ आ रही थी नीचे गली से. मैं उठ के बालकनी में गयी, नीचे झाँका, कुछ दिखा नहीं. मैंने सोचा शायद मन का वहम है. बिस्तर पर दुबारा पड़ते ही वही आवाज़ फिर से सुनाई पड़ी. बारिश हो रही थी और ये किसी जानवर की आवाज़ थी. मेरा दिमाग ठंडा पड़ गया. इंसानो की तकलीफ से मुझे उतनी तकलीफ नहीं है जितनी जानवरो की तकलीफ से होती है. मैंने तुरंत कपडे पहने, छाता उठाया, और दौड़ पड़ी नीचे. होश उड़ गए मेरे. मैंने देखा की एक अदना सा पिल्ला सड़क पे पड़ा है. इतना स्थिर था मानो मर गया हो. मैं थोड़ा और पास गयी, उसके पेट को छू के देखा. पेट थोड़ा तो हिल रहा था. मैं सोचने लगी, ’इतना छोटा बच्चा है ये, मुश्किल से १० दिन का भी नहीं है, इसकी माँ कहाँ है?‘ तभी वही आवाज़ फिर से सुनाई पड़ी. मैंने देखा की ये बच्चा तो बिलकुल स्थिर है. बिलकुल भीगा हुआ, सिर्फ इसका पेट हिल रहा है, फिर ये आवाज़ कहाँ से आ रही है? नज़र दौड़ाने पे देखा की घासों के बीच एक और पिल्ला है. बिलकुल भीगा हुआ, ठण्ड से ठिठुरता हुआ. मैंने उसे उठाया,उठाते ही किसी ने ज़ोर से भोंका। इसकी माँ एक गाड़ी के नीचे बैठी थी. दोनों बच्चे बाहर थे. पानी में. मेरा दिमाग मानो सुन्न। मुझे लगा की शायद माँ की तबियत ख़राब है वरना वो इतने छोटे बच्चों को बाहर कैसे भीगने दे सकती है! मैंने दोनो बच्चों को उठाया और गाड़ी के नीचे रख दिया. माँ इतनी खुश! अपनी हिलाने लगी  जैसे मैंने कुछ अद्भुत  कर दिया हो. मेरा मन फिर शांत हो गया. मैं वापस आ गयी. अब कोई  आवाज़ नहीं आ रही थी. मैंने सोचा शायद ये माँ के लिए रो रहे थे. नींद आ गयी. मैं सो गयी.